
करवा चौथ त्याग और समपर्ण का व्रत है। इस व्रत में महिलाएं निर्जल व्रत रखकर पति औऱ परिवार की मंगल कामना के लिए देवी करवा और शिव परिवार की पूजा करती हैं और चांद के दर्शन के बाद ही जल और अन्न ग्रहण करती हैं। इस व्रत के तमाम पहलुओं को देखने के बाद आप भी कहेंगे कि, करवा चौथ प्रेम, तपस्या और समर्पण की पराकाष्ठा का पर्व है।
करवा चौथ भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे देशभर में और विदेशों में भी जहां भारतीय परिवार रहते हैं, बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सधवा महिलाओं (विवाहित महिलाओं) द्वारा अपने पति की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और मंगल की कामना के लिए रखा जाता है। करवा चौथ कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, और इस दिन का विशेष महत्व यह है कि महिलाएं निर्जला (बिना पानी पिए) व्रत रखती हैं रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।
करवा चौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
करवा चौथ भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है । इस व्रत में महिलाएं श्री गणेश जी की पूजा करती हैं, जो मंगल और सिद्धि के देवता माने जाते हैं। गणेश जी की पूजा करने से उनके पति के जीवन में सभी बाधाओं का नाश होता है और समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि चंद्रमा को शीतलता, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने से पति-पत्नी के जीवन में चंद्रमा जैसी शीतलता और संतुलन की प्राप्ति होती है।
करवा चौथ: प्रकृति पूजा का संदेश
करवा चौथ सिर्फ एक धार्मिक व्रत नहीं है, बल्कि यह प्रकृति पूजा का भी प्रतीक है। चंद्रमा, जल, और प्रकृति के अन्य तत्वों का इसमें प्रमुख स्थान है। करवा चौथ यह संदेश देता है कि पति-पत्नी के जीवन में समृद्धि और शांति तब ही संभव है जब वे प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखें। इस व्रत के दौरान महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि जीवन में शांति और समृद्धि के लिए प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के तत्वों जल, क्षित, पावक, गगन और समीर को सम्मान देना और उनके साथ संतुलन बनाए रखना जीवन के लिए अनिवार्य है।
करवा चौथ का समाज में महत्व
करवा चौथ का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह भारतीय समाज में पति-पत्नी के रिश्ते को और भी मजबूत करता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति के प्रति अपनी निष्ठा, प्रेम और समर्पण को प्रदर्शित करती हैं। यह प्रेम और समर्पण किसी भी दांपत्य जीवन के लिए आवश्यक आधारभूत तत्व हैं। करवा चौथ के व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति के साथ अपने रिश्ते को और अधिक प्रगाढ़ करती हैं। यह एक ऐसा अवसर है, जब पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम, निष्ठा और आदर को फिर से जीवित करते हैं ।
करवा चौथ का तप और आत्मसंयम
करवा चौथ को एक तपस्या के रूप में देखा जा सकता है। इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन बिना भोजन और पानी के रहती हैं, और फिर भी अपने सभी घरेलू और बाहरी कार्यों को उसी तत्परता से निभाती हैं। विशेष रूप से मजदूर और कृषक महिलाएं, जो दिनभर शारीरिक परिश्रम करती हैं, इस कठिन व्रत का पालन करती हैं। फिर भी वे अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटतीं। यह केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता और आत्मसंयम का भी परिचायक है। यह व्रत महिलाओं की इच्छा शक्ति और आत्म-नियंत्रण को सुदृढ़ करता । इसी इच्छा शक्ति के कारण भारतीय नारी पति का जीवनपर्यन्त सुख-दुख में साथ देती है ।
व्रत के माध्यम से माताएं अपने आत्मबल और धैर्य का परिचय देती हैं। यह प्रश्न तर्क संगत है कि क्या कोई व्यक्ति पांच तत्वों में से एक को एक दिन के लिए भी छोड़ सकता है? इसका उत्तर महिलाओं के इस व्रत के माध्यम से मिलता है, जब वे जल को छोड़कर तप करती हैं। यह आत्मसंयम और त्याग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो करवा चौथ को विशिष्ट बनाता है।
करवा चौथ का आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
करवा चौथ न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश भी देता है। इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं और अपने पति के साथ चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि पति-पत्नी के जीवन में चंद्रमा जैसी शीतलता और शांति होनी चाहिए। दांपत्य जीवन में संतुलन और शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब दोनों एक-दूसरे के प्रति समान आदर और सम्मान का भाव रखें। करवा चौथ का यह संदेश भी है कि पति-पत्नी मिलकर प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की साधना करें। यह एक अनूठी परंपरा है, जो हमें यह सिखाती है कि समाज और परिवार की समृद्धि के लिए पति-पत्नी को मिलकर कार्य करना चाहिए और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह सनातन परंपरा का एक अद्भुत उदाहरण है, जिसे अन्य किसी धर्म, संप्रदाय या मजहब में इस प्रकार से देखने को नहीं मिलता ।
करवा चौथ: प्रेम, तपस्या और समर्पण की पराकाष्ठा
करवा चौथ प्रेम, तपस्या, और समर्पण की पराकाष्ठा का पर्व है। यह वह दिन है, जब महिलाएं अपने पति के दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए संकल्पित होती हैं। यह व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच के अटूट प्रेम और निष्ठा का प्रतीक भी है। करवा चौथ यह सिखाता है कि प्रेम का सही अर्थ तब है, जब उसमें समर्पण, त्याग और तपस्या हो।
यह पर्व समाज को यह संदेश भीा देता है कि दांपत्य जीवन की सफलता के लिए पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान और समर्पित होना चाहिए। करवा चौथ का व्रत केवल एक दिन का तप नहीं है, बल्कि यह उस निष्ठा और प्रेम का प्रतीक है, जो जीवनभर के साथ के लिए आवश्यक है। पति-पत्नी का यह संबंध केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि यह समाज और संस्कृति के स्तर पर भी महत्वपूर्ण है, और करवा चौथ इस संबंध की शक्ति और उसकी गहराई को समझने का अवसर प्रदान करता है।
कहां कितने बजे निकला चांद:
-दिल्ली- रात 7 बजकर 53 मिनट
– मुंबई- रात 8 बजकर 36 मिनट
– कोलकाता- रात 7 बजकर 22 मिनट
– बेंगलुरु- रात 8 बजकर 30 मिनट
– चेन्नई- रात 8 बजकर 18 मिनट
– लखनऊ- रात 7 बजकर 42 मिनट
– जयपुर- रात 7 बजकर 54 मिनट
– पुणे- रात 8 बजकर 56 मिनट
– गुरुग्राम- रात 7 बजकर 55 मिनट
– नोएडा- रात 7 बजकर 52 मिनट
– नोएडा- रात 7 बजकर 52 मिनट
– गांधीनगर- रात 8 बजकर 28 मिनट
– भोपाल- रात 8 बजकर 07 मिनट
– पटना- रात 7 बजकर 29 मिनट
– रांची- रात 7 बजकर 35 मिनट
– रायपुर- रात 7 बजकर 43 मिनट
– भुवनेश्वर- रात 7 बजकर 40 मिनट
– चंडीगढ़- रात 7 बजकर 48 मिनट
– जम्मू- रात 7 बजकर 52 मिनट
– शिमला- रात 7 बजकर 45 मिनट
– देहरादून- रात 7 बजकर 24 मिनट
– मदूरई- रात 8 बजकर 36 मिनट
– गंगटोक- रात 8 बजकर 40 मिनट
– ईटानगर- शाम 6 बजकर 50 मिनट
– दिसपुर- रात 8 बजकर 24 मिनट
– कोहिमा- रात 8 बजकर 13 मिनट
– इंफाल- शाम 6 बजकर 55 मिनट
– शिलोंग- शाम 7 बजकर 02 मिनट
– पणजी- रात 8 बजकर 39 मिनट
– हैदराबाद- रात 7 बजकर 43 मिनट
– श्रीनगर- रात 7 बजकर 48 मिन
– पुडुचेरी- रात 8 बजकर 24 मिनट
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